Monday, September 17, 2018

रोजाना एसप्रिन खाना हो सकता है ख़तरनाक

रोज़ाना एक एसप्रिन लेना उम्रदराज़ लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई है.
दिल के दौरे के बाद अक्सर डॉक्टर एसप्रिन लेने की सलाह देते हैं क्योंकि ये दवाई खून को पतला करती है और दोबारा दिल के दौरे से बचाती है.
यह बात साबित भी हो चुकी है कि दिल का दौरा पड़ने के बाद एसप्रिन से फ़ायदा होता है.
लेकिन 70 साल की उम्र पार कर चुके स्वस्थ लोगों के मामले में ऐसा नहीं है.
इस अध्ययन के मुताबिक 70 से ज़्यादा उम्र वाले स्वस्थ लोगों को इसका कोई फ़ायदा नहीं होता है. यहां तक कि इस दवाई से उनमें आंतरिक रक्तस्राव का ख़तरा भी बढ़ जाता है.
ये शोध अधेड़ उम्र के लोगों पर किया गया था. इसमें अमरीका और ऑस्ट्रेलिया के 19,114 लोग शामिल थे जिन्हें उस वक्त तक दिल से जुड़ी कोई बीमारी नहीं हुई थी.
इनमें से आधे लोगों को पांच साल तक रोज़ाना एसप्रिन खाने के लिए दी गई.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित तीन रिपोर्ट्स दिखाती हैं कि उनमें ​न तो दिल की बीमारियों का ख़तरा कम हुआ और न ही कोई और फ़ायदा हुआ.
यहां तक कि इससे पेट में रक्तस्राव भी शुरू हो गया.
मोनाश यूनिवर्सिटी से प्रोफ़ेसर जॉन मैकनील कहते हैं, ''इस अध्ययन का मतलब ये है कि रोजाना एसप्रिन खाने वाले लाखों बुजु्र्गों को इससे कोई फायदा नहीं है और साथ ही रक्तस्राव का ख़तरा भी है.''
''यह अध्ययन उन डॉक्टर्स की भी मदद करेगा जो लंबे समय से इस उलझन में हैं कि स्वस्थ मरीजों को एसप्रिन देनी चाहिए या नहीं.''
इस अध्ययन में ये भी पाया गया कि कैंसर से होने वाली मौतों का खतरा बढ़ा है. हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि इस मामले में और जांच की जानी जरूरी है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पीटर रॉथवेल कहते हैं कि 70 साल की उम्र तक अगर आपको दिल का दौरा नहीं पड़ा है तो इस दवाई के वाकई बहुत कम फायदे हैं.
यह अध्ययन उन लोगों पर लागू नहीं होता जो दिल की बीमारी के कारण एसप्रिन ले रहे हैं. उन्हें अपने डॉक्टर की ही सलाह माननी चाहिए.
जो लोग लंबे समय से एसप्रिन की कम मात्रा ले रहे हैं उन्हें इसे तुरंत बंद न करने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से भी समस्या हो सकती है. उन्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए.
आज सारी दुनिया छोटे-छोटे गैजेट्स में सिमट कर जेब में आ गई है. दुनिया का कोई भी कोना सिर्फ़ एक क्लिक की दूरी पर है.
आज हम उन रास्तों पर भी बेखौफ़ चल पड़ते हैं जिनका ओर-छोर पता नहीं होता.
हम बेफ़िक्र होते हैं, यह सोच कर कि हमारे पास गूगल मैप है. वो हमें भटकने नहीं देगा.
लेकिन आज से पांच सौ बरस पहले ऐसा नहीं था. ज़रा सोचिए जब लोगों के पास ऐसे संसाधन नहीं थे तब लोग कैसे सफ़र करते होंगे.
जब लोगों को यही नहीं पता होता था कि समंदर कितने हैं, महाद्वीप कितने हैं. अमरीका किधर है. इंडोनेशिया कहां है. उस दौर में भी बहुत से साहसी लोग नाव पर सवार होकर या पैदल ही दुनिया की सैर को निकल पड़ते थे.
आज तो हर जगह का नक़्शा है. गूगल मैप ने दुनिया को क़दमों में नाप कर, समेटकर आप के मोबाइल में डाल दिया है. लेकिन पांच सौ बरस पहले तो दुनिया का ठीक-ठीक नक़्शा भी काग़ज़ पर नहीं उकेरा गया था.
शुरुआती दौर के नक़्शे दुनिया की आधी-अधूरी तस्वीरें पेश करते थे. उस दौर में नक़्शा बनाने का केंद्र इटली के शहर हुआ करते थे.
इटली और स्पेन के कारोबारी और अन्वेषक पूरे हौसले से दुनिया की खोज को निकलते थे. फिर ये जो जानकारी लेकर लौटते थे, उनके आधार पर नक़्शे बनाए जाते थे. पुराने नक़्शों में सुधार किया जाता था.
यूरोप में दुनिया का पहला नक़्शा 1448 में तैयार किया गया था जो कि ख़ूबसूरत और दिलकश था. इसे वेनिस के मानचित्रकार जियोवान्नी लिआर्दो ने चमड़े पर तैयार किया था. इसका नाम था प्लेनिस्फ़ेरो.
इस नक़्शे की बुनियाद थे यूनानी-रोमन विद्वान टॉलेमी का भूकेंद्रीय मॉडल, बुत परस्तों के निशान, ईसाइयों की श्रद्धा, अरबी भौगोलिक सिद्धांत और वैज्ञानिक फॉर्मूले शामिल थे. इस नक़्शे में तमाम प्रायद्वीपों को उन्हीं नामों से रेखांकित किया गया है, जिस नाम से उस दौर में यूरोप के लोग इन्हें जानते थे.
नक़्शे में दुनिया के चारों तरफ़ छह दायरे बने हैं, जिनमें छोटे-छोटे नंबर और अक्षर लिखे हैं. इन नंबरों और दायरों से ज़मीन के चारों तरफ़ चांद की चाल, मौसमों और त्यौहारों का चक्र समझाया जाता था.
प्लेनिस्फ़ेरो, लैटिन भाषा का शब्द है. प्लेनस मतलब चपटा और स्फ़ेरस मतलब गोला. मानचित्रकार जियोवान्नी लिआर्दो के दस्तख़त वाले सिर्फ़ तीन ही नक़्शे आज मौजूद हैं. सबसे पुराना नक़्शा 1442 का है जो इटली के मध्यकालीन शहर वेरोना की बिबलियोटेका कम्यूनेला नाम की लाइब्रेरी में सुरक्षित है. लिआर्दो का आख़िरी मानचित्र 1452 का है, जो अमरीकन ज्योग्राफ़िकल सोसाएटी लाइब्रेरी में है.
लेकिन इस नक्शे से पहले 1448 में एक और नक़्शा तैयार किया गया था. ये मानचित्र भी इटली के ही एक अन्य शहर वेनिस में बिबलियोटेका सिविका बर्टिलोनिया लाइब्रेरी में सुरक्षित है.
बताया जाता है कि बिबलियोटेका सिविका बर्टिलोनिया में नक़्शों पर हज़ारों किताबें और हस्तलिपियां हैं. अगर इन सभी को फैला कर रखा जाए तो क़रीब 19 किलोमीटर में फ़ैल जाएंगी.
इटली के विसेन्ज़ा शहर में अमीरों की तादाद ज़्यादा थी. कहा जाता है कि ये अमीर नक़्शे, गाइड और बेशक़ीमती किताबें लाइब्रेरी को दान कर देते थे. 15वीं और 16वीं सदी में खोजी सफ़र पर निकलने वालों के लिए ये नक़्शे ट्रैवल गाइड की तरह काम करते थे. इन्हीं नक़्शों की बुनियाद पर नाविकों ने दुनिया के कई हिस्से खोज निकाले.
15वीं और 16वीं शताब्दी के अंत में जिस समय दुनिया के नए-नए इलाक़े खोजे जा रहे थे उसी समय प्रिंटिंग का काम भी शुरू हुआ. जिसने नक़्शे छापने के काम में इंक़लाब लाने का काम किया. नाविकों, व्यापारियों से जितनी भी जानकारियां मिलती थीं उन्हें छापकर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाया जाता था.
छपाई के बाद जियोवान्नी लिआर्दो का प्लेनिस्फ़ेरो पुराना पड़ चुका था. आज हम दुनिया को जितना जानते है वो इन्ही नाविकों और व्यापारियों की जानकारी के बदौलत जानते हैं.

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