"अफ़ग़ानिस्तान का मामला बहुत पुराना और पेचीदा है. पहली बात यह है कि शांति के लिए चर्चा होनी चाहिए. तीन बड़े पक्षकार हैं- अमरीका, तालिबान और अफ़ग़ान सरकार. चर्चा के लिए ज़रूरी है कि आपसी विश्वास बढ़ाया जाए. इसके अलावा जो अन्य मुल्क हैं- चीन, रूस, पाकिस्तान, भारत, तुर्की और सऊदी अरब. इनका कुछ न कुछ असर है और दख़ल है पाकिस्तान में. इन्हें शांति वार्ता का समर्थन करना चाहिए."
वरिष्ठ पत्रकार रहीमुल्ला यूसुफ़ज़ई अफ़ग़ानिस्तान से हथियारों और ड्रग्स को हटाने की भी ज़रूरत बताते हैं.
"जब तक अफ़ग़ानिस्तान में मज़बूत सरकार नहीं आएगी, तब तक यह मसला हल नहीं होगा. बाहरी दख़ल भी रुकना चाहिए. साथ ही वार्ता शुरू हो तो पक्षकारों को तय करना होगा कि कुछ भी हो जाए, बातचीत रोकनी नहीं है. तभी कुछ हो सकता है."
इस बीच अफ़ग़ान तालिबान के मुख्य वार्ताकार शेर मोहम्मद अब्बास ने एक बार फिर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप को बातचीत का न्योता दिया है ताकि जंग का ख़ात्मा हो सके.
वरिष्ठ पत्रकार रहीमुल्ला को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में फिर अमरीका और तालिबान के बीच वार्ता शुरू हो सकती है. अन्य विश्लेषकों का भी ऐसा ही मानना है क्योंकि ट्रंप प्रशासन की शुरू ही अफ़ग़ानिस्तान से पूरी तरह बाहर निकलने की योजना रही है.
मगर प्रश्न यह है कि फिर जो वार्ता होगी, क्या वह सफल हो पाएगी?
अफ़ग़ानिस्तान में इतने सालों से चली आ रही जंग बताती है कि हिंसा के रास्ते तो वहां शांति आ नहीं सकती. शांति का एक ही रास्ता है- बातचीत करके आपस में सहमति बनाना.
जानकारों का कहना है कि अमरीका और तालिबान की वार्ता टूटी ही इसलिए, क्योंकि दोनों का एक-दूसरे पर भरोसा नहीं है. इसलिए जरूरी है कि दोनों पहले ऐसे क़दम उठाएं कि एक-दूसरे का भरोसा जीत सके.
सऊदी अरब में सरकारी तेल कंपनी अरामको के प्रतिष्ठानों पर किए गए हमलों को लेकर कहा गया कि ये हमले ड्रोन से किए गए थे.
यमन के हूती विद्रोहियों ने इस हमले की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा कि इसे अंजाम देने के लिए 10 ड्रोन भेजे गए थे.अमरीका और सऊदी अरब ने ड्रोन से हमले की बात को स्वीकार करते हुए इस पर बयान भी दिए.
हाल के दिनों में मध्य पूर्व देशों में यूएवी (मानवरहित ड्रोन) से हमले के मामले में वृद्धि हुई है.
आईए जानते हैं कि ये हमलावर ड्रोन किन-किन देशों के पास हैं? अब तक किसने उनका इस्तेमाल किया है और तकनीकी रूप से उतने आगे न होने के बावजूद वहां इसे बनाने की क्यों लगी है होड़.
पहली बार अफ़ग़ान युद्ध के दौरान तालिबान के क़ाफ़िले पर हमले के लिए हमलावर ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था. यह हमला अक्तूबर 2011 में किया गया था.
ये हमलावर ड्रोन शुरू में इसराइल और अमरीका जैसे कुछ उन देशों के पास ही थे जो तकनीक के मामलों में काफ़ी आगे माने जाते हैं.
जल्द ही हथियार बेचने की होड़ में एक नया देश चीन सामने आया जो दुनियाभर में अपने हथियार बेचने की चाहत रखता था.
चीन ने अपने सैन्य ड्रोन को मध्य पूर्व के देशों को बेचना शुरू किया और आज यह क़रीब आधा दर्जन देशों को अपने हथियार मुहैया करा रहा है.
इसकी यूएवी तकनीक भी पहले से बेहतर हुई और आम ड्रोन की तकनीक में बदलाव कर उसे लड़ाकू ड्रोन में भी बदला जा सकता है.
उचित औद्योगिक सक्षमता के साथ कोई भी देश आधुनिक यूएवी का निर्माण कर सकता है.
इसका सबसे अच्छा उदाहरण ईरान है. जिसने ड्रोन की कहीं अधिक अत्याधुनिक तकनीक को यमन के हूती विद्रोहियों को ट्रांसफ़र करने में मुख्य भूमिका निभाई है.
No comments:
Post a Comment